Leave a Comment / Poetries / By AkshiniBhatnagar अक्षिणी के दोहे.. भेजा जो चाटन मैं चला, भेजा मिला न मोय,जो सर खोजा आपना, भेजा पड़ा था सोय. निर्मम धागा प्रेम का, मत जोड़ो कविराय,चैन नहीं दिन रैन और मतिभ्रष्ट होई जाय. खरबूजे से खरबूजा मिले, बदले रंग हजार,ना बदले तो बिके नहीं, सड़ता बीच बजार. सभी जन चमचे राखिए,बिन चमचे सब सून,चमचा जंतर साध के , साहिब बनो लंगूर.. जीभ पे शक्कर राखिए, मन में फांस दबाय.पीठ पे काँटे बोइए, फिर माटी दियो चटाय. तलवे चाटत सुख मिले, नाक लियो कटवाय,ठकुर सुहाती कीजिए, का अपनो घटि जाय. मुख देखी सब प्रीत है, मतलब के सब मीत.भाई बंधु राम सब , हानि लाभ की रीत.. अक्षिणी भटनागर