Leave a Comment / Poetries / By AkshiniBhatnagar छोटा सा सवाल.. मरता क्या न करता बेचारा,डूबते को बस तिनके का सहारा.. सौ साल पुरानी पार्टी का हाल बड़ा बेहाल,सत्ता से हुए दूर तो लड़खड़ा गई चाल.. छटपटाहट है इनकी देखने वाली,कैसे फंसे फिर जनता भोली भाली.. कहीं कुछ ना मिला तो बातों का बिछाया जाल,आतंकियों की आधी रोटी में मिला रहे दाल.. इसके नेताओं का अंदाज़ बड़ा बचकाना है,चेलों-चमचों का अब भी न कोई ठिकाना है.. आए दिन उठाते रहते हैं ये बवाल,किसी तरह तो गल जाए फिर दाल.. समझ न पाएं ये छोटा सा एक सवाल,बासी कढ़ी में फिर कैसे आए उबाल.. अक्षिणी भटनागर