Share

चलते चलते..

चलते – चलते, रुकते – थमते,
झुकते – चुकते, बनते – ठनते,
शब्दों के ताने जुड़ जाएं
और कविता बन जाए..

कड़वी नीम निंबोरी को..
मीठी आम अमोरी को..
चख पाएं तो कह पाएं..
और कविता बन जाए..

गहरी रात अंधेरी हो,
डसती पीर घनेरी हो,
सह जाएं तो कह पाएं..
और कविता बन जाए..

मन कविता सरिता में बह जाए,
और रचिता मुदिता हो मुसकाए,
बह जाएं तो कह जाएं,
और कविता बन जाए..

अक्षिणी भटनागर

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top