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कोई समंदर…

कोई समंदर हो तुम
या एक लहर भर
देर तक साथ हो तुम
या एक पहर भर
कोई रोशनी हो तुम
या एक सहर भर
कोई मंजिल हो मेरी
या एक सफर भर
चंद टुकड़े ज़िंदगी
या फिर उमर भर
वाकई मौत हो तुम
या बस जहर भर
‘इंतिहा’ उसे दोस्त कह दे
या कोई बशर भर..

अक्षिणी भटनागर

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