Leave a Comment / Poetries / By AkshiniBhatnagar खुरचन.. इंतिहा जवाब तो आए थे,सवालों को भाए नहीं.इंकलाब भी लाए थे, तुम हम समझ पाए नहीं.. है यकीं अगर तो उसे रिहा कर दो,वो न सही तुम ये वादा वफा कर दो.. यादों–वादों का इतना ही फसाना है,ये जो आएं तो सुकूं छिन जाना है.इंतिहां मुसीबत का सामां है येहमने इन्हें गले ना लगाना है.. छोड़ो भी अब,काहे बैठे हो जमाने को भुलाए..जाने न मुहब्बत वो,माने ना जो तुम्हारे मनाए.. अक्षिणी भटनागर